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कलाम
कहाँ हैं इंतिहा-ए-ज़ौक़-ए-कामिल देखने वालेहमें देखें कि हम हैं हुस्न-ए-बातिल देखने वाले
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ग़ौस क़ुतुब न उरे उरेरे आशिक़ जाण अगेरे हूजेहड़े मंज़िल आशिक़ पहुंचण ग़ौस न पावण फेरे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
दुनिया है ये अंदाज़-ए-शबिस्ताँ कोई दिन औरअच्छा तो फिर इक ख़्वाब-ए-परेशाँ कोई दिन और
सीमाब अकबराबादी
कलाम
या मोहम्मद तेरा 'मैकश' तेरी महफ़िल तेरा जामहासिल-ए-मस्ती भी तू है मस्ती-ए-हासिल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
साबित सिदक़ क़दम अगेरे ताईं रब्ब लुभीवे हूलूँ लूँ दे विच ज़िकर अल्लाह दा हर-दम पया पढीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कहाँ अब वो सुरूर-ए-दौर-ए-अव्वल बज़्म-ए-हस्ती मेंजिसे कहते हैं दुनिया है वो ऐ 'मैकश' ख़ुमार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
आक़िल रेवाड्वी
कलाम
न ख़ुश आता है सहरा और न दिल बस्ती में लगता हैये कैसी कश्मकश में जान है और कैसी मुश्किल है